नशाबन्दी की जब से
सरकार ने की घोषणा।
प्यालों की खनखन
मधुशालों में लुप्त हुई।
पीते नजर आते
सरे आम सड़कों पर
मजनू का दल
लैला की आँखों में।
बच्चन विहारी की ,
गालिब फिराक की
मद भरी आँखों के
छलकते पैमाने में
जीवन भर का नशा
ढूँढ़ने में लगे हैं।
कहते हैं –
बारह बरस बाद
गधों के भी दिन फिरते हैं।
इसलिए उठा है
कवियों की मंडली में
खुशियों का ज्वार।
उनकी कल्पनायें
सदियों बाद
हुई साकार।
प्याले की हाले की
सारे मधुशाले की
आ गई शामत।
देखते ही देखते
नैनों के प्याले की
बढ़ी लोकप्रियता
और चढ़ गई कीमत
उपयुक्त हास्य कविताएँ स्वर्गीय बी एन झा द्वारा लिखित पुस्तक इन्द्रधनुष से ली गई है ।