जाने कैसे भूल गये तुम ,
वो झूटी – सच्ची बातें ?
जाने कैसे छूटी सपनों में ,
अपनों की वो मुलाकातें ?
क्या अपना था क्या सपना था ?
जाने क्या सच था , भ्रम था ?
जब आँख खुली तो पाया ,
कि हर सपना छल का क्रम था।
वक्त गुजर जाता है लेकिन,
यादें नहीं गुजरती है।
सासों की लड़ी टूटे बेशक ,
उम्मीद नहीं मरती है।
काश वक्त अपने संग – संग ,
वो यादें भी ले जाता।
जो जाता है जाते – जाते ,
वो वादे भी ले जाता।
वो वादा जो वादा करते थे ,
साथ – साथ चलने का
सच समझा हमने डूबे हम ,
वो आँसू क्रम थे छलने का।
उपयुक्त पक्तियां अमित तिवारी द्वारा लिखी गई है।