कुमार आलोक ।
कायस्थ लोग कलम के तेज या कहे धनी होते है। बिहार में कहावत है कि क्षत्रिय के तलवार के धार से भी बड़ी धार होती है लालाजी के कलम में। लाला जी की नयी नयी शादी हुयी थी। लाला जी पढ़े लिखे थे लेकिन कहीं नौकरी नहीं थी। एक आध साल के बाद उनकी धर्मपत्नी लाला जी को कोसने लगी । रोज उलाहना देती कि बाबूजी कइसन करमकीट से वियाह कर दिलहन। पत्नी का ताना सुनते – सुनते लाला जी परेशान हो उठे। एक दिन अपनी कलम दवात उठाई और सोचा कि चलो नहीं कहीं कुछ रोजगार मिला तो बच्चों को पढ़ाकर छोटा – मोटा स्कूल खोल देंगे।
अगली सुबह अपने घर का त्याग कर निकल पड़े रोजगार की तलाश में। गर्मी का दिन था। चलते – चलते भरी दुपहरिया में लाला जी पसीने -पसीने हो गये। सुकुमार तो थे ही। दोपहर में एक पेड़ के नीचे घर से बंधे हुये पोटली का खाना खाया। पेड़ की छांव में लालाजी को नींद आ गयी। खर्राटे लेकर सो गये। वह पेड़ भूतों का बसेरा था। शाम हुई, भूत जब लौटकर पेड़ पर वापस आये तो देखा कि एक आदमी सो रहा है।
भूतों के तो पौ बारह हो गये । उनमें से नौजवान भूत ने कहा, अहा — आज तो इंसान का ताजा खून पीने के लिये मिलेगा। तभी एक बुज़ुर्ग भूत ने अपने साथियों को समझाया — अरे सब जानते है कि यह पेड़ भूतों का बसेरा है यहां तो कोई इंसान दिन में भी नहीं फटकता। जरूर कोई असाधारण इंसान है। बुज़ुर्ग भूत ने लालाजी को जगाया। लालाजी की नींद टूटी तो आस -पास भूतों के काफिले को देखकर उनके तो प्राण ही सूख गये। लालाजी ने सोचा मरना तो है ही, क्यूं ना कुछ अक्ल का इस्तेमाल किया जाये। बुजुर्ग भूत ने लाला जी को डपटते हुये पूछा ——– अरे इंसान के बच्चे तुम कौन हो ? तुम्हें डर नही लगा कि ये पेड़ भूतों का बसेरा है।
लालाजी ने हिम्मत का प्रदर्शन करते हुये कहा — हमें क्यूं डर लगेगा तुम लोग अब अपनी सोचो। बुज़ुर्ग भूत थोड़ा सहमा और बोला आखिर क्यूं ?
लालाजी ने कहा कि मैं इंद्र देवता का क्लर्क हूं । मुझे देवता ने यहां भेजा है कि जाओ धरती पर और इस पेड़ के नीचे रहने वाले भूतों का सर्वे करो। ये भूत निकम्मे और कामचोर है । पूरी गिनती कर जल्द ही इन्ही खेतों में काम पर लगाओ। बुजुर्ग भूत ने लालाजी के पांव पकड़ लिये। हे किरानी महाराज सदियों से हमलोग स्वच्छंद जीवन जीते आये है। हमें ऐसी सजा नहीं दीजिये । ले -देकर मामला रफा – दफा कीजिये ।
आप जो कहें हम करने के लिये तैयार हैं । लालाजी ने मन ही मन सोचा कि तीर सही निशाने पर लगा है। ठीक है देवता तो हम पर पूरा विश्वास करते है। चलिये रोज 20 क्विंटल अनाज घर पंहुचा दीजिये मैं इस मामले को अपने रिस्क पर सुलझाने की कोशिश करता हूं। लालाजी घर लौट आये। बस अगले दिन से 20 क्विंटल अनाज लाला जी के घर रोज पहुंचने लगा । लालाइन को भी लगा कि बाप रे बाप हम झूठ ही अपने मर्दाना की काबिलियत पर शक करते थे। लालाजी के घर अब खुशियों की बारिश होने लगी। यह सब देखकर लालाजी के पड़ोसी व्यापारी भाई को नहीं सुहाया। सोचा कि लाला जी कि इस सफलता के पीछे क्या राज है ?
व्यापारी ने अपनी पत्नी को जासूस बनाकर लालाइन से इसका भेद जानने के लिए लालाजी के घर भेजा। लालाइन सीधी साधी थी । सारा राज व्यापारी की पत्नी को बता दिया। व्यापारी ने सोचा अच्छा बेटा तो तुम्हारी सफलता का ये राज है। उसी दिन शाम को व्यापारी भाई चल दिये उस भूतों वाले पेड़ के नीचे । जानबूझकर मटियाकर सो गये। भूत आये। व्यापारी को जगाया। व्यापारी ने वही डायलॉग बोला जो लालाजी ने भूतों से कहा था। भूत एक साथ जब डपटे तो व्यापारी महोदय के प्राण सूख गये। उन्होंने सच्चाई बता दिया। भूतों ने व्यापारी की खूब पिटाई की और दंडस्वरूप उन्हें ये कहा कि तुम लालाजी को रोज 20 किलो घी दंड के रूप में पहुंचाओ। व्यापारी भाई मान गये। जाकर लालाजी से आरजू मिन्नत की तो लाला जी 5 किलो डेली पर मान गये।
अब तो लालाजी के दिन और मजे से कटने लगे। एक दिन बुजुर्ग भूत ने अपने साथियो से मंत्रणा की कि कहीं ये लालाजी हमलोगों को बेवकूफ तो नही बना रहा है। अगले दिन बुजुर्ग भूत अपना चोला बदलकर कुत्ते के भेष में लालाजी के यहां पहुंचे। लालाजी के कुत्ते का नाम गिरधारी था । लालाजी ने खाना खाने के बाद अपने कुत्ते को गिरधारी आ ,आ करके बुलाया। संयोग से बुजुर्ग भूत का नाम भी गिरधारी था। उसकी तो सिट्टी – पिट्टी गुम। कुत्ते का भेष त्यागकर बुजुर्ग भूत लालाजी के चरणों में गिर पडा।
हे किरानी महाराज मुझे माफ कर दीजिये मैने बेवजह आप पर शक किया। लालाजी को समझ में आ गया कि भाग्य ने गेंद तो फिर मेरे पाले में फेंक दिया है। लालाजी ने बुजुर्ग भूत से कहा देखो भाई तुम्हें तो इसके लिये मुझे कड़ी से कड़ी दंड देनी चाहिये लेकिन चलो मैं तुम्हें बख्श देता हूं।
हां, तुम ऐसा करो कि रात में तुमलोग मेरे गोदाम में आओ और जो कच्चा अनाज तुम लोग दे आते हो उसकी रोज पिसाई करो। बुजुर्ग भूत ने एवमअस्तु कहा और वापस अपने पेड़ की ओर लौट आया।