मीमांसा डेस्क।
ब्रेन ट्यूमर काफी कॉमन है। इसकी घटना अगर देखी जाए तो जनसंख्या के लिहाज से एक लाख में से एक मरीज को होता है। इसके लक्षण सिर दर्द होना , उल्टी होना या फिर बेहोशी हो जाना , मिर्गी के दौरे आना आदि हैं।
अगर ट्यूमर और बढ़ जाता है तो मरीज धीरे-धीरे बेहोशी में जाता है, कोमा में जाता है एवं सही उपचार नहीं होने पर उसकी हालत गंभीर हो जाने से मृत्यु भी हो सकती है। जब मरीज सिर दर्द, उल्टी या फिर फिट्स की स्थिति में किसी जनरल फिजीशियन या फिर न्यूरोफिजीशियन के पास जाता है, तो फिर उसकी जाँच प्रक्रिया कराई जाती है। सिटी स्कैन या फिर ब्रेन का एमआरआई कराया जाता है। इससे पता चलता है कि ट्यूमर कितना बड़ा है और दिमाग पर कितना दवाब कर रहा है। इससे यह भी पता चलता है कि सर्जरी की कितनी जरूरत है। यह जरूरी नहीं है कि हर ट्यूमर का इलाज उसकी सर्जरी हो।
बिना सर्जरी के भी इसे ठीक किया जा सकता है। अगर ट्यूमर छोटा है, सूजन नहीं है, ज्यादा दबाव नहीं कर रहा है, या मरीज के लक्षण ऐसे नहीं है तो शुरू में उसे कुछ महीनो तक निगरानी में रखा जाता है। अगर ट्यूमर तेजी से बढ़ रहा है, दबाव से उल्टियाँ हो रही हैं और ऐसा लगे कि मरीज की जान खतरे में है तो तुरंत ऑपरेशन करना पड़ता है ।
- कैसे पता चलता है कि कोई व्यक्ति ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित है ?
ब्रेन ट्यूमर के लक्षण सिर दर्द होना, उल्टी होना, चक्कर आना, या फिर ट्यूमर के ज्यादा दबाव होने से अमूमन लकवा आने लगता है।
जैसे ब्रेन के बायीं ओर ट्यूमर है तो दायीं ओर लकवा आने लगता है ।क्योंकि ब्रेन के बायीं ओर का हिस्सा दायीं ओर के हाथ पैर की ताकत को कंट्रोल करता है। अगर लकवा आने लगता है तो बगैर सिटी स्कैन या एमआरआई के हमें अंदाजा लग जाता है कि मरीज के लेफ्ट साईड ब्रेन में ट्यूमर है। फिर हम मरीज का सिटी स्कैन या फिर एमआरआई कराते हैं, जिसमें उसकी हमें शेडो दिख जाती है, और उसे शैडो से हमें पता चल जाता है कि ट्यूमर कहाँ है, इसका नेचर कैसा है।
यह कैंसरस या फिर नॉन कैंसरस है । फिर हम उसका इलाज सजेस्ट करते हैं। मरीज को तैयारी करके ऑपरेशन थियेटर में ले जाते हैं। सर्जरी में हम उसे खोलकर निकालते हैं । ऑपरेशन के दो फायदे हैं। एक तो रसौली या ट्यूमर के नेचर का पता चलता है, कैंसरस या नॉन कैंसरस है।
अगर कैंसर है तो सर्जरी के बाद भी मरीज को दो-तीन तरीके के इलाज देने पड़ते हैं। रेडियोथेरेपी, सिकाई या फिर कीमोथेरेपी, जिसमें कोई कैप्सूल्स या इंजेक्शनस देने पड़ती है । और अगर वह बिनाईन है तो उसे पूरा निकाल दिया जाता है। अगर वह कैंसर है तो हो सकता है कि 6 महीने या फिर 2 साल बाद कैंसर पूर्ण बढ़ जाने से मरीज की मृत्यु हो जाए।
- ट्यूमर कैंसरस है या फिर नॉन कैंसरस है, इसका कैसे पता चलता है?
इसका पता पैथॉलॉजी से चलता है। हम ट्यूमर निकाल कर सैंपल लैब में भेजते हैं। वहाँ जांच की रिपोर्ट 5 से 7 दिनों में आ जाती है, जिसमें यह पता चलता है कि उसके सेल्स कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं, कितनी अप्राकृतिक कोशिकाएँ है और वह कितनी फैली हैं। ट्यूमर में कैंसर का ग्रेड होता है।
ग्रेड वन में मरीज 20 से 30 साल तक जी सकता है। ग्रेड टू में मरीज की उम्र 10 से 15 साल, ग्रेड थ्री में 5 से 10 साल ग्रेट फोर जो की काफी खतरनाक है, में मरीज की आयु 6 महीने से 2 साल तक की होती है। इसमें रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी के बावजूद मरीज की उम्र ज्यादा नहीं होती है। इसलिये लोगों में कैंसर के नाम का भय रहता है।
- सर्जरी के बाद ट्यूमर के आने की कितनी संभावना होती है ?
सर्जरी के बाद भी ट्यूमर आने की संभावना होती है। सर्जरी के बाद दो-तीन सालों तक दवाई लेनी पड़ती है ।अगर मिर्गी के मरीज हों तो उन्हें तीन-चार साल तक दवाई लेनी पड़ती है।
- किस उम्र में ब्रेन ट्यूमर होने की अधिक संभावना होती है ?
किसी भी उम्र के व्यक्ति को ट्यूमर हो सकता है ज्यादातर यह वयस्कों में होता है ।50 से 60 वर्ष के बुजुर्गों के ट्यूमर में कैंसर होने की संभावना होती है। बच्चों में अधिकतर ट्यूमर कैंसर होता है। इसमें मरीज की आयु 5 साल तक होती है। अपगंता भी आ जाती है। महिलाओं में अधिकतर हार्मोन बढ़ने की वजह से भी टयूमर होता है। इसके लक्षण महिलाओं में मेनोपॉज के बाद, स्तन से दूध का रिसाव होना, नजर कमजोर आदि है ।
उनमें ट्यूमर का पता लगने पर नाक के रास्ते दूरबीन से ट्यूमर को निकाला जाता है। यह सर्जरी काफी स्किलफुल है, जो बहुत कम सेंटर पर ही की जाती है। कई बार ट्यूमर ऐसी जगह होता है , जिससे मरीज की याद्दाश चली जाती है और फिर सर्जरी के बाद याददाश्त चली भी आती है।