उन्मुक्त्त भाव से विचरण कर
नभ पर पद चिन्ह बनाती चल
अपनी क्षमता के बलबूते सागर पे भी इठलाती चल
अग्रिमा बने तू उस पथ की
जिस राह पे चलना मुश्किल हो
कटक से प्रीति की रीति चला
छलनी आँचल भी झिलमिल हो
शैलों के सीने चीर , मार ठोकर तो बहता जाए जल
तू कर ले साथ , आँधियों का
हौसला बिजलियों को दे दे
माथे पर धूल लगा पथ की
पहचान धैर्य की तू दे दे
लाख थपेड़े हो तुफानों के , फिर भी बलखाती चल
उपयुक्त पंक्तियां परिधि से पहचान तक रजनी सैनी द्वारा लिखी गई है।