बही लिखना ,सनद लिखना
मेरी चाहत का कद लिखना।
मेरी बातों को तुम कंकर
और अपने लब शहद लिखना।
तुम्हें पाना नहीं फिर भी
तुम्हारी याद में खोना।
तुम्हारे ख्वाब में जगना
तुम्हारे नींद में सोना।
मगर फिर हर घड़ी मुंह
फ़ेरकर वो बैठे जाने की।
तुम अपनी बेरुखी लिखना और
मेरी जिद की हद लिखना।
न जाने प्यार था , व्यापार था
लाचार था ये मन।
उधर संसार था , इस पार था
बेकार सा जीवन।
कभी बैठो कलम लेकर
जो मन के तार पर लिखने।
वो स्वपनों के बही खाते
वो साखी , वो सबद लिखना।
कहां मै सीख पाया था
वो शब्दों के महल बोना।
असल था प्यार वो मेरा
था जिसके ब्याज में रोना।
किताबों में कभी लिखना
हिसाब अपने गुनाहों का
बहे जो ब्याज में आंसू
वो सब के सब नकद लिखना।
बही लिखना सनद लिखना।
उपयुक्त पक्तिया अमित तिवारी के द्वारा लिखी गई है।