मीमांसा डेस्क।
गंभीर चोटों , स्ट्रोक ,रीढ़ की हड्ड़ी को नुकसान आदि जैसी समस्याएं न्यूरोपैथिक दर्द में परिवर्तित हो सकती हैं। यह दर्द किसी व्यक्ति की दिनचर्या को प्रभावित करता है।
ऐसे में न्यूरोपैथिक दर्द के निदान के बारे में जानकारी होना आवश्यक है। न्यूरोपैथिक दर्द का इलाज करना मुश्किल है और यह वास्तव में किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को कम कर सकता है। ऐसा आमतौर पर इसलिए होता है क्योकि नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं या ठीक से काम नहीं करती हैं।
न्यूरोपैथिक दर्द के इलाज के लिये डॉक्टर पहले इस बात का पता लगाते हैं कि दर्द कहां हो रहा है और किस प्रकार का है। इसके लिये वह थ्री एल दृष्टिकोण नामक विधि का प्रयोग करते हैं।
इसके तहत पीड़ित के दर्द के बारे में सुनते हैं , शारारिक संकेतों को देखते है , और दर्द वाली जगह का पता लगाते हैं। इसमें उन्हें दर्द की सही स्थिति जैसे अत्यधिक दर्द , जलन , बिजली के झटके जैसा दर्द , जलन , बिजली के झटके जैसा दर्द , दर्द का आना – जाना , या इधर – उधर घूमने का पता लगता है। इसके लिये पीड़ित के संपूर्ण स्वास्थ्य की जानकारी और जांच की आवश्यकता होती है।
डॉक्टर उपचार से पूर्व पीड़ित की चिकित्सकीय दशा , तथा अन्य बीमारी के बारे में पड़ताल करते हैं। दर्द के सटीक उपचार के लिये समस्या के जड़ तक पहुंचना महत्वपूर्ण होता है।
हर किसी के शरीर में दवा के प्रति अलग – अलग प्रतिक्रिया होती है, इसलिए आपको डॉक्टर से सही दवा लेने में थोड़ा समय लग सकता है। कई बार डॉक्टर दर्द से निपटने के लिए दवाओं के मिश्रण का एक साथ उपयोग करते हैं।