सावरकर की पुस्तक पर ब्रिटिश ने प्रकाशन से पहले ही लगाया था प्रतिबंध

चिन्मय दत्ता, चाईबासा, झारखंड
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के पास स्थित भागुर गांव में दामोदर पन्त सावरकर के घर हुआ था। माँ राधाबाई के यह पुत्र, भारत के महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, इतिहासकार, राष्ट्रवादी नेता और विचारक थे। हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का श्रेय इनको ही जाता है।
इन्होंने स्थानीय नवयुवकों को संगठित कर मित्र मेलों का आयोजन किया जिससे नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रांति की ज्वाला जाग उठी। इसके बाद 1904 में इन्होंने एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसका नाम ‘अभिनव भारत’ रखा।

इन्होंने 1857 की क्रांति पर आधारित पुस्तकों का गहन अध्ययन किया और पुस्तक ‘द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इंडियन इंडिपेंडेंस’ लिखकर इन्होंने सिद्ध किया कि अंग्रेजों को किस तरह जड़ से उखाड़ा जा सकता है।

यह भारत के प्रथम और विश्व के एकमात्र लेखक थे जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था।
7 अप्रैल 1911 को इन्हें काला पानी की सजा पर सेल्यूलर जेल भेजा गया जहां इन्होंने बन्दिओं को शिक्षित करने के साथ ही हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास किया जिससे भयावह कारावास में ज्ञान का दीप जला और वहां हिंदी पुस्तकों का ग्रंथालय बन गया।
10 नवम्बर 1957 को नई दिल्ली में आयोजित हुए 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शताब्दी समारोह में विनायक मुख्य वक्ता रहे। इस क्रांतिकारी सफर पर चलते हुए 26 फरवरी 1966 को बम्बई में इनका प्राणांत हो गया। इनके नाम पर पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम ‘वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा’ रखा गया।
वीर सावरकर की जयंती पर पाठक मंच के कार्यक्रम इन्द्रधनुष की 780वीं कड़ी में मंच की सचिव शिवानी दत्ता की अध्यक्षता में यह जानकारी दी गई।
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